Thursday, December 16, 2010

उस पार

उस पार है मेरे स्वप्न
होंगे क्या वैसे , देखे थे जैसे
उस पार है मेरा चंदा
चमकता है क्या यहाँ जैसा
उस पार है मेरे कल
निकलेंगे क्या आज से बेहतर

खींचता है ज्ञात , चाहे हैं इसमें कांटे कई
डराता है अज्ञात... भले हो उसमे फूल नए
संभवत: इसलिए हैं तुम्हारे काँधे प्यारे
तुम बने सर्वव्यापी , शक्तिशाली प्रभु हमारे
तुम हो मेरा वो वह ...जो मैं न बन पाया कभी

1 comment:

  1. तुम हो मेरा वो वह ...जो मैं न बन पाया कभी
    ye ehsaas hai to us sa ban'na bhi ho jaayega , aatmvat wah hai hi vidyaman hamare bhitar!
    sundar abhvyakti!

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