Thursday, December 16, 2010

फेस-बुकिया कविता.

बहुत चाहा , सोचा, प्रयास किया कि लिखी जाये एक कविता
कविता के बिना यहाँ रंग नहीं जमता
ऐसी कालजयी कविता, जिसका न हो कोई सानी
जिसे अपनाने,सराहने में न हो कोई परेशानी ;
इसी सोच में दिमागी घोड़े दौडाए, बोराए , घबराये,
दशा देख मित्र हम पर तरस खाए , हौसला बढाए
चिंता न करो भाई, बोझ करो हल्का
facebook पर कवि बनना है काम पल भर का

सम सामयिक विषय तलाशो
राजनीती, प्यार मोहब्बत, इश्वरप्रेम को कलम पे तराशो
चलते है सदा
प्रतिक्रिया मिलेगी बढ़िया
आखिर ऐसा कौन है जो इन्हें नकार सकता है!!
बहु अर्थी शब्द चुनों, हों चाहे क्लिष्ट ,
ज्ञान कहाँ सरल होता है भाई !
बस हमारी बन आई
और कविता को पनपाया
शब्दों, अलंकारो,बिम्बों,प्रतीकों से सजाया ,
भीड़ भरे चौक में पोस्टर कर दिए जारी
इस अति सुंदर कविता को मिली प्रतिक्रिया भारी,
धन्यवाद् पा पा कर लोग हो गए खुश
कमेन्ट ही कमेन्ट को खींचता है ....:)
कविता हो गयी पुश (push

फिरकोई बच्चा बोल पड़ा देखो देखो हो रहा लाश का सम्मान
इतने सुमन हार जिसपे , नहीं है उसमे जान
यह सब कवि - आडंबर है ,कविता कहाँ है ?
शब्दों अलंकारों में खो गयी सोच कहाँ है ?
माना आप सब हैं बड़े ज्ञानी
पर असली कविता अभी तक नहीं पहचानी
खो जायेंगे शब्द,धुंधले होंगे बिम्ब
तब देख सकोगे तुम अपना प्रतिबिम्ब

नहीं बनती कविता किस्से, किताबों से
इश्क, मोहब्बत,या हुस्नो शबाबों से
रेत के महलों या दरिया किनारों से
उपज आती है केवल मन(आत्मा) के झंकृत तारों से
गुलाब का फूल नहीं कविता, रखा जाये जिसका ध्यान
यह तो जंगली बेल है ,हो न पायेगा अनुमान

जिस दिन समझोगे शब्द हैं केवल ज़रिया
उस दिन लिख पाओगे तुम कविता बढ़िया

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ,, व्यंग्य के साथ एक सन्देश देती कविता

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