Sheathed with doubts and distraught with conflicts
Timidity of my existence
Bred enormous anxieties
Never looked beyond me. still could not get ME
Rapt with riding on the waves ,
always missed the feathery touch of gentle breeze
Busy uncovering others, forgot my own layers
Captivated by the games they play
Overlooked my own pretence and display
knowledge, , lectures, analysis of all
yes , i admit, do enthrall
yet, fail miserably ...
to calm the agitated mind
to pierce the stony heart
to quench the thirsty soul
to be the lamp-post of
man's eternal quest
ifs and buts ...keep us in the rut
Caught in the web of compulsions
Drained by the questions
Worn-out from the struggle
Weary of the realities of survival
Occupied the self with niceties
life became hectic and eventful
Robots are productive and useful !!
And then ...you made your way in
without any door or window open
without any stifling sermon
just with tender eyes
and blistering devotion
Enveloped in the Cocoon of your grace
...Today ....I...dare to Dream again.....
Fuelled by your love....
.Today ...I ...dare to Live again....Come what may!!.
Thursday, December 23, 2010
Monday, December 20, 2010
आग्रह
यकायक तुम्हारे आने से
एक बवंडर सा उठा
क्षत-विक्षत हो दिमाग किसी कोने में गिरा
और दिल बन गया है सागर उफनता
जैसे सिन्धु-तट पे पूर्णिमा के चाँद का समां
मनोरम भयावहता लिए ....
डर और संशय से भीगी रेत पे
मदमाती लहरों की मनमोहकता में बंधा
पतवार छोड़ने में असमर्थ
पर ज्ञान के मोती पाने को उत्सुक ....मैं
मन और बुद्धि की पहेलियाँ बूझने को तत्पर
दे पाओगे तुममे बसा दृढ़ता और धैर्य
साहस और लगन
बनने दोगे मुझे ...तुम सा
क्या मैं भी लगा सकूंगा ग़ोता गहरा ....
स्वयं को पाने के लिए
एक बवंडर सा उठा
क्षत-विक्षत हो दिमाग किसी कोने में गिरा
और दिल बन गया है सागर उफनता
जैसे सिन्धु-तट पे पूर्णिमा के चाँद का समां
मनोरम भयावहता लिए ....
डर और संशय से भीगी रेत पे
मदमाती लहरों की मनमोहकता में बंधा
पतवार छोड़ने में असमर्थ
पर ज्ञान के मोती पाने को उत्सुक ....मैं
मन और बुद्धि की पहेलियाँ बूझने को तत्पर
दे पाओगे तुममे बसा दृढ़ता और धैर्य
साहस और लगन
बनने दोगे मुझे ...तुम सा
क्या मैं भी लगा सकूंगा ग़ोता गहरा ....
स्वयं को पाने के लिए
Sunday, December 19, 2010
वो आइना.
मेरी हर हरकत,हर शिकन से था वाकिफ
याद कराता था सदा वो चेहरे मेरे
रखा जिन्हें मुश्किल से बंद किसी संदूक में
मेरे वो अक्स , वो दोस्तों के मुखौटे सारे
जो किये दफ़न बिना परवाह किन्ही खंडहरों में
मेरी वो मासूमियत , वो नादानियाँ ,वो बचपने
भुला देना चाहता हूँ कैसे भी ,कुछ भी कर के
मेरी अभ्यस्त मुस्कुराहटें , कारगर से दमदार कहकहे
सीखी दिलकश अदाएं , भव्य लुभावने अंदाज़
कौन देख पाता है , आँखों में बसे वीराने को
सख्त,कठोर,निर्मम ,पत्थर हुआ ये दिल मेरा
अक्स बनाने में बना निपुण देखे क्यूँकर अपना चेहरा
मेरे बने रहने के लिए ...ज़रूरी था टूटना
कमज़ोर, नाज़ुक, सुकोमल, क्षण-भंगुर आईने का
कीमत चुकानी पड़ती है ,हर बार बहार की
चूँकि किरचों में नहीं जी सकते ये ज़िन्दगी हर दम
.
याद कराता था सदा वो चेहरे मेरे
रखा जिन्हें मुश्किल से बंद किसी संदूक में
मेरे वो अक्स , वो दोस्तों के मुखौटे सारे
जो किये दफ़न बिना परवाह किन्ही खंडहरों में
मेरी वो मासूमियत , वो नादानियाँ ,वो बचपने
भुला देना चाहता हूँ कैसे भी ,कुछ भी कर के
मेरी अभ्यस्त मुस्कुराहटें , कारगर से दमदार कहकहे
सीखी दिलकश अदाएं , भव्य लुभावने अंदाज़
कौन देख पाता है , आँखों में बसे वीराने को
सख्त,कठोर,निर्मम ,पत्थर हुआ ये दिल मेरा
अक्स बनाने में बना निपुण देखे क्यूँकर अपना चेहरा
मेरे बने रहने के लिए ...ज़रूरी था टूटना
कमज़ोर, नाज़ुक, सुकोमल, क्षण-भंगुर आईने का
कीमत चुकानी पड़ती है ,हर बार बहार की
चूँकि किरचों में नहीं जी सकते ये ज़िन्दगी हर दम
.
Thursday, December 16, 2010
फेस-बुकिया कविता.
बहुत चाहा , सोचा, प्रयास किया कि लिखी जाये एक कविता
कविता के बिना यहाँ रंग नहीं जमता
ऐसी कालजयी कविता, जिसका न हो कोई सानी
जिसे अपनाने,सराहने में न हो कोई परेशानी ;
इसी सोच में दिमागी घोड़े दौडाए, बोराए , घबराये,
दशा देख मित्र हम पर तरस खाए , हौसला बढाए
चिंता न करो भाई, बोझ करो हल्का
facebook पर कवि बनना है काम पल भर का
सम सामयिक विषय तलाशो
राजनीती, प्यार मोहब्बत, इश्वरप्रेम को कलम पे तराशो
चलते है सदा
प्रतिक्रिया मिलेगी बढ़िया
आखिर ऐसा कौन है जो इन्हें नकार सकता है!!
बहु अर्थी शब्द चुनों, हों चाहे क्लिष्ट ,
ज्ञान कहाँ सरल होता है भाई !
बस हमारी बन आई
और कविता को पनपाया
शब्दों, अलंकारो,बिम्बों,प्रतीकों से सजाया ,
भीड़ भरे चौक में पोस्टर कर दिए जारी
इस अति सुंदर कविता को मिली प्रतिक्रिया भारी,
धन्यवाद् पा पा कर लोग हो गए खुश
कमेन्ट ही कमेन्ट को खींचता है ....:)
कविता हो गयी पुश (push
फिरकोई बच्चा बोल पड़ा देखो देखो हो रहा लाश का सम्मान
इतने सुमन हार जिसपे , नहीं है उसमे जान
यह सब कवि - आडंबर है ,कविता कहाँ है ?
शब्दों अलंकारों में खो गयी सोच कहाँ है ?
माना आप सब हैं बड़े ज्ञानी
पर असली कविता अभी तक नहीं पहचानी
खो जायेंगे शब्द,धुंधले होंगे बिम्ब
तब देख सकोगे तुम अपना प्रतिबिम्ब
नहीं बनती कविता किस्से, किताबों से
इश्क, मोहब्बत,या हुस्नो शबाबों से
रेत के महलों या दरिया किनारों से
उपज आती है केवल मन(आत्मा) के झंकृत तारों से
गुलाब का फूल नहीं कविता, रखा जाये जिसका ध्यान
यह तो जंगली बेल है ,हो न पायेगा अनुमान
जिस दिन समझोगे शब्द हैं केवल ज़रिया
उस दिन लिख पाओगे तुम कविता बढ़िया
कविता के बिना यहाँ रंग नहीं जमता
ऐसी कालजयी कविता, जिसका न हो कोई सानी
जिसे अपनाने,सराहने में न हो कोई परेशानी ;
इसी सोच में दिमागी घोड़े दौडाए, बोराए , घबराये,
दशा देख मित्र हम पर तरस खाए , हौसला बढाए
चिंता न करो भाई, बोझ करो हल्का
facebook पर कवि बनना है काम पल भर का
सम सामयिक विषय तलाशो
राजनीती, प्यार मोहब्बत, इश्वरप्रेम को कलम पे तराशो
चलते है सदा
प्रतिक्रिया मिलेगी बढ़िया
आखिर ऐसा कौन है जो इन्हें नकार सकता है!!
बहु अर्थी शब्द चुनों, हों चाहे क्लिष्ट ,
ज्ञान कहाँ सरल होता है भाई !
बस हमारी बन आई
और कविता को पनपाया
शब्दों, अलंकारो,बिम्बों,प्रतीकों से सजाया ,
भीड़ भरे चौक में पोस्टर कर दिए जारी
इस अति सुंदर कविता को मिली प्रतिक्रिया भारी,
धन्यवाद् पा पा कर लोग हो गए खुश
कमेन्ट ही कमेन्ट को खींचता है ....:)
कविता हो गयी पुश (push
फिरकोई बच्चा बोल पड़ा देखो देखो हो रहा लाश का सम्मान
इतने सुमन हार जिसपे , नहीं है उसमे जान
यह सब कवि - आडंबर है ,कविता कहाँ है ?
शब्दों अलंकारों में खो गयी सोच कहाँ है ?
माना आप सब हैं बड़े ज्ञानी
पर असली कविता अभी तक नहीं पहचानी
खो जायेंगे शब्द,धुंधले होंगे बिम्ब
तब देख सकोगे तुम अपना प्रतिबिम्ब
नहीं बनती कविता किस्से, किताबों से
इश्क, मोहब्बत,या हुस्नो शबाबों से
रेत के महलों या दरिया किनारों से
उपज आती है केवल मन(आत्मा) के झंकृत तारों से
गुलाब का फूल नहीं कविता, रखा जाये जिसका ध्यान
यह तो जंगली बेल है ,हो न पायेगा अनुमान
जिस दिन समझोगे शब्द हैं केवल ज़रिया
उस दिन लिख पाओगे तुम कविता बढ़िया
You and Me.
Times have changed , life has taken us thru
but some things are same...me and you
I flow like river,gushing, rushing, sparkling and eager
You the endless waiting,accepting, inviting ocean so far yet so near.
I want fears to blurr , and time to stall...
.enjoying life, guess we have it all....
You think of shared dreams, hopes, n ambitions, ..
.always reaching the top, beyond expectations
You give me courageous context, where I lose me ,on any pretext
You enliven me like live wire; you enchant me with untamed desire
I bring solace, calmness and rest ;strength reserves to pass any test
When i look at mirror , i look at you ...solitude for me is being with you
The hectic rush,in the midst of conquest or crush...
you share it all, be it shame or enthrall....
How can we be not the whole
When we listen to the whispers of our soul
Come lets once more sit under that old tree
Still we are same ...you and me....
शुरू करें फिर से ?.
आज जो मुड़ के देखा तो समझ मे आया
कभी न जान सकी मैं
तुम्हारी चाहत की शिद्दत
तुम्हारे यकीं का जूनून
तुम्हारा सब कुछ लुटा देना यूँ ही
बड़ा करना मुझे ,सर झुका के अपना
तुम्हारा निष्पाप , निर्दोष मन
तुम्हारा न जताने का यतन
तुम्हारे मुक़द्दस इरादे
वो अनकहे से वादे
वो ऊँचे सपनो के महल
वो गहरे प्रेम के भंवर
अगाध अपनापन , संयत ,अनुशासित मन
मैं नासमझ , न जान सकी ये सब
बस इतना जानती थी ....कुछ है ऐसा जो खींचता है अपनी तरफ
अब मुड़ के देखती हूँ तो लगता है
यदि जानती ,कह पाती ये सब
तो न मिलते बेसाख्ता ,आज यूँ बेसबब
मुझे देखते ही तुम्हारे चेहरे का उजास
बता गया बहुत कुछ अनायास ,
तुम थे विज्ञ , कहना चाहते थे ऐसा ही कुछ
जबान लड़खड़ाने का, हाँ तुम्हे भी है दुःख
अहसास छुपाते हो , बन के अवाक् , मूक
ये कहानी भी हमारी है ,रंगमंच भी अपना
असंभव तो नहीं, देखना फिर वो अधूरा सपना
क्या हुआ जो नहीं मिल पाए मुकाम , मंजिलें , जो थीं तय
क्या हुआ जो क्षरित हुई वो ऊर्जा , जिसे मानते थे अक्षय
क्या हुआ जो खोये से हो तुम और वीरान से हम
मिल के नहीं उठा सकते , क्या हम ये जोखिम?
कौन जाने ...दूसरा आधा भी हो सकता है बेहतर
साथ चलने का सुख है , हर सुख से बढ़कर
कभी न जान सकी मैं
तुम्हारी चाहत की शिद्दत
तुम्हारे यकीं का जूनून
तुम्हारा सब कुछ लुटा देना यूँ ही
बड़ा करना मुझे ,सर झुका के अपना
तुम्हारा निष्पाप , निर्दोष मन
तुम्हारा न जताने का यतन
तुम्हारे मुक़द्दस इरादे
वो अनकहे से वादे
वो ऊँचे सपनो के महल
वो गहरे प्रेम के भंवर
अगाध अपनापन , संयत ,अनुशासित मन
मैं नासमझ , न जान सकी ये सब
बस इतना जानती थी ....कुछ है ऐसा जो खींचता है अपनी तरफ
अब मुड़ के देखती हूँ तो लगता है
यदि जानती ,कह पाती ये सब
तो न मिलते बेसाख्ता ,आज यूँ बेसबब
मुझे देखते ही तुम्हारे चेहरे का उजास
बता गया बहुत कुछ अनायास ,
तुम थे विज्ञ , कहना चाहते थे ऐसा ही कुछ
जबान लड़खड़ाने का, हाँ तुम्हे भी है दुःख
अहसास छुपाते हो , बन के अवाक् , मूक
ये कहानी भी हमारी है ,रंगमंच भी अपना
असंभव तो नहीं, देखना फिर वो अधूरा सपना
क्या हुआ जो नहीं मिल पाए मुकाम , मंजिलें , जो थीं तय
क्या हुआ जो क्षरित हुई वो ऊर्जा , जिसे मानते थे अक्षय
क्या हुआ जो खोये से हो तुम और वीरान से हम
मिल के नहीं उठा सकते , क्या हम ये जोखिम?
कौन जाने ...दूसरा आधा भी हो सकता है बेहतर
साथ चलने का सुख है , हर सुख से बढ़कर
उस पार
उस पार है मेरे स्वप्न
होंगे क्या वैसे , देखे थे जैसे
उस पार है मेरा चंदा
चमकता है क्या यहाँ जैसा
उस पार है मेरे कल
निकलेंगे क्या आज से बेहतर
खींचता है ज्ञात , चाहे हैं इसमें कांटे कई
डराता है अज्ञात... भले हो उसमे फूल नए
संभवत: इसलिए हैं तुम्हारे काँधे प्यारे
तुम बने सर्वव्यापी , शक्तिशाली प्रभु हमारे
तुम हो मेरा वो वह ...जो मैं न बन पाया कभी
होंगे क्या वैसे , देखे थे जैसे
उस पार है मेरा चंदा
चमकता है क्या यहाँ जैसा
उस पार है मेरे कल
निकलेंगे क्या आज से बेहतर
खींचता है ज्ञात , चाहे हैं इसमें कांटे कई
डराता है अज्ञात... भले हो उसमे फूल नए
संभवत: इसलिए हैं तुम्हारे काँधे प्यारे
तुम बने सर्वव्यापी , शक्तिशाली प्रभु हमारे
तुम हो मेरा वो वह ...जो मैं न बन पाया कभी
Wednesday, December 8, 2010
On your Ground.....
standing on top of precipice
i had nothing but pity
for those down below
slowly the ice melted
erupted sympathy
with warmth of friendships
got enriched with empathy
under severe heat of omnipresent sun
each flake of snow turning into gracious water
i became the river....
now flowing with love ...unbound...unheard of....
forever....rushing to meet you
on your ground .
i had nothing but pity
for those down below
slowly the ice melted
erupted sympathy
with warmth of friendships
got enriched with empathy
under severe heat of omnipresent sun
each flake of snow turning into gracious water
i became the river....
now flowing with love ...unbound...unheard of....
forever....rushing to meet you
on your ground .
साहस, करो एक बार फिर.
संभव नहीं है प्रेम में मोहित हो उड़ना निर्द्वंद
आकाश है सीमित , रिवायतों और रिवाजों में
रिश्तों और स्वार्थों की अनदेखी सी कड़ियाँ ,
बाँध लेती हैं सायास हर अभिव्यक्ति को
टूटी माना जिन्हें , वही जंजीरे अमरबेल की
पाश सी हर बार ,नए रूपों में
ये खुला हुआ समां, यूँ ही हो जाता है गुम
समंदर शांत , रुकी सी नदी ,
हवा का एक कतरा भी नहीं, पंछी चुप
जिंदगी जैसे भूल जाये होना अपना
यादें भी नहीं बाकी...
उजाला चुभता सा , चांदनी सर्द
क्षुब्ध ह्रदय , क्लेशमय आंसू
खीझते स्वयं की लाचारगी पे
भ्रम के कोहरे से धुआं हुआ विश्वास
क्यूंकि भरोसे हालात के होते हैं ग़ुलाम
उस एक पल रुक जाता है सब
दिल के दरवाज़े हो बंद जब
परदे उठाने का साहस, करो एक बार फिर
फैलने दो अपनेपन का उजास ....संभव है निर्दोष प्यार अब भी
आकाश है सीमित , रिवायतों और रिवाजों में
रिश्तों और स्वार्थों की अनदेखी सी कड़ियाँ ,
बाँध लेती हैं सायास हर अभिव्यक्ति को
टूटी माना जिन्हें , वही जंजीरे अमरबेल की
पाश सी हर बार ,नए रूपों में
ये खुला हुआ समां, यूँ ही हो जाता है गुम
समंदर शांत , रुकी सी नदी ,
हवा का एक कतरा भी नहीं, पंछी चुप
जिंदगी जैसे भूल जाये होना अपना
यादें भी नहीं बाकी...
उजाला चुभता सा , चांदनी सर्द
क्षुब्ध ह्रदय , क्लेशमय आंसू
खीझते स्वयं की लाचारगी पे
भ्रम के कोहरे से धुआं हुआ विश्वास
क्यूंकि भरोसे हालात के होते हैं ग़ुलाम
उस एक पल रुक जाता है सब
दिल के दरवाज़े हो बंद जब
परदे उठाने का साहस, करो एक बार फिर
फैलने दो अपनेपन का उजास ....संभव है निर्दोष प्यार अब भी
उत्तर कहाँ हैं .....
प्रश्नों से पशेमान हम
प्रश्न हैं बेकल , पूछे जाने को बेज़ार
प्रश्न बन गए रिवाज़ से ......निभाते हैं सब
प्रश्न हैं बस एक तिनका....सहारा देते सब चैनलों को
कुछ कलाबाजियां, कुछ मशविरे
और फिर 'मुन्नी' ओर 'शीला' के चर्चे
रह जाती है हक्की-बक्की भीड़ ...दिशा की खोज में
और जला पाती है बस मोमबत्तियां
सच कहाँ दीखता है मद्धिम प्रकाश में
भीड़ हो के भी निर्बल....एकाकी सी, लाचार
कभी बजाती है ढोल-ताशे भी
आने वाला कल अवश्य होगा सुनहरा ....
जीतेगा आम आदमी कभी तो
और फिर हो जाती है तितर-बितर
रोज़मर्रा की जद्दो-जहद में आदमियत जाती है बिखर
दंभ में झूमता दुराग्रह , गर्वित है इस बिखरन पर
रक्त चरित्र रचे जा रहे चंहु ओर....
रक्तबीज जी उठता रह रह कर
हथियारों को बल मानने वाली सोच
आज इन्ही से हो गयी निर्बल
फिर शिव की तलाशो , फिर पुकारो काली को
या फिर
हटा दो प्रश्नचिंह किताबों से ...उत्तर की औपचारिकता ही ख़त्म
.
प्रश्न हैं बेकल , पूछे जाने को बेज़ार
प्रश्न बन गए रिवाज़ से ......निभाते हैं सब
प्रश्न हैं बस एक तिनका....सहारा देते सब चैनलों को
कुछ कलाबाजियां, कुछ मशविरे
और फिर 'मुन्नी' ओर 'शीला' के चर्चे
रह जाती है हक्की-बक्की भीड़ ...दिशा की खोज में
और जला पाती है बस मोमबत्तियां
सच कहाँ दीखता है मद्धिम प्रकाश में
भीड़ हो के भी निर्बल....एकाकी सी, लाचार
कभी बजाती है ढोल-ताशे भी
आने वाला कल अवश्य होगा सुनहरा ....
जीतेगा आम आदमी कभी तो
और फिर हो जाती है तितर-बितर
रोज़मर्रा की जद्दो-जहद में आदमियत जाती है बिखर
दंभ में झूमता दुराग्रह , गर्वित है इस बिखरन पर
रक्त चरित्र रचे जा रहे चंहु ओर....
रक्तबीज जी उठता रह रह कर
हथियारों को बल मानने वाली सोच
आज इन्ही से हो गयी निर्बल
फिर शिव की तलाशो , फिर पुकारो काली को
या फिर
हटा दो प्रश्नचिंह किताबों से ...उत्तर की औपचारिकता ही ख़त्म
.
Tuesday, December 7, 2010
Still walking.
In walking towards you,
the world withered away
shivering desires , precious posessions shrank
yearnings ,frictions,attachments...
melted away in air like camphor
somewhere, somehow...forgot the purpose , the attainment
only path remained
and i kept on walking ...step after step
chantings became mumbling
even rosary seemed heavy
just void...filled all blanks...
what do i tell others
which others
what is there to tell.....Void all....
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