जब से थी वो आई
लाई ऐसा खुमार
हर जन हुआ शुमार
जाने कैसा जूनून था
अपने होने पे गुरूर था
...झूम के नाची यूँ ......तक धिन
मृदंग मंजीरे बज उठे
सुर दिशाओं के सज उठे
उसके नृत्य में सब हुए मदहोश
ओढ़नी, चुनर किसको कहाँ रहा होश
समय भी रुक गया , हो उठा लालची
फिर न दिखेगा ये सुर संगम
ये रास , ये रंगीलापन
छोड़ गयी फिर अचानक हमें
यूँ ही विस्मित , अचंभित , उन्मादित ,आलोकित
वो रात
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