तुम कैसे कहते हो रुक गया हूँ मैं
तम्हे कैसे लगा झुक गया हूँ मैं
ठीकरों को मूर्ति कर दे , है वो श्रद्धा मुझमे
सिंहासनो को हिला दे , ऐसा विश्वास दिल में
कुछ देर थमने से धुंधलाती नहीं निगाहें
...मेरे दिल की आग से रोशन हैं मेरी राहें
अभी मेरा लहू है वही लाल गाड़ा रगों में
अभी मेरे सपने हैं वही सलोने सतरंगी
नाद के हुंकार से जगी हुई जिजीवषा
चोट सहने की बाकी है अब तक क्षमता
छिल गए घुटने मगर , हड्डियाँ सलामत हैं
दम्भियों , मुझ से डरो, आने वाली क़यामत है
कुछ देर थमने से धुंधलाती नहीं निगाहें
ReplyDelete...मेरे दिल की आग से रोशन हैं मेरी राहें
बहुत सुंदर!
मंजुला कहाँ हो आजकल।
ReplyDeleteअपर्णा